गर्जना
गर्जना


मैं बेटी हूँ
मैं बहन हूँ
मैं बहूँ हूँ
मैं पत्नी हूँं
मैं मां हूँ
मैं दुर्गा हूँं
तो में ही चंडी हूँ
हर रिश्ते को निखारा मैंने
हर शक्स को संवारा मैंने
इस नर को धरा पर मैंं ही तो लाई
मुझसे ही तो इसने ये दुनिया पाई
मेरा झुकना तेरा बड़ना
मेरा कहना तेरा समझना
जो ये तालमेल बिगड़ा
होगा द्वंद तगड़ा
हर कोई मुझे टोके
आगे बढ़ने से रोके
उम्र कोई भी हो
रिश्ता कोई भी हो
हर कोई नोचे मुझे यहां
कैसे कहूँं जो मेने सहा
पर अब चुप नहीं रहना है
दुनिया से ही मुझे ये कहना है
है नारी उठ।
गर्जना कर
विलाप भूल कर
दुख से उबर
नाश कर इन रक्षासो का
गर्जना कर तू
गर्जना कर।