प्रकृति को सास लेने दो
प्रकृति को सास लेने दो
इस प्रकृति को सास लेने दो
अपनी मन की भी कहने दो
उसका भी दम घुटता है
जब प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ता है
यू तो धरती सबको शरण देती हैं
पर इस पदार्थ को हटाओ कहती हैं
पशु पक्षी भी इसे ना पचा पाए
फस जाए तो दम तोड़ जाए
क्या इसके बिना हम जी नहीं सकते
सागर भी है इस से त्रस्त
इसे हटाने के वो व्यस्त
वायु इसे ना घोल पाए
इसकी विषाक्तता प्राण ले जाए
अग्नि का जब प्रहार पड़ा
तब ये तांडव और बड़ा
पुनः प्रयोग भी ना हो पाएगा
तेरा दिल भी रो जाएगा
इतना धेर्य धर नहीं सकते
इसका बहिष्कार करना होगा
इसके बिन भी जीवन संभव होगा
पुरानी पद्धति फिर अपनाओ
प्रकृति को फिर महकाओ।