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deepshikha divakar

Others

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deepshikha divakar

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वक्त

वक्त

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किसी का वक्त नहीं गुजर रहा 

किसी का अपना वक्त के साथ गुजर गया

कल तक जो प्रकृति से खेला

आज प्रकृति उस से खेल गई 

अगला कौन होगा

यही एक सवाल है 

अभी दुनिया में बवाल है

जो निकला वो गया

करती ये हवा बया

रोटी की भूख 

बाहर ले जाती हैं

उफ्फ ये गरीबी बड़ा तड़पाती है

वक्त का मारा 

हर कोई बेचारा

अब कोई तमन्ना नहीं , बस जीने की आस है

धनी है वही जिसका परिवार पास है 

मन में एक डर

कर गया है घर

ना जाने अब किसकी खबर आए

मजबूर हैं इतने किसी का दुख भी ना बाट पाए

ये समाज कल तक मृतुभोज करता था

तब कहा किसी बीमारी से डरता था

आज वक्त बदला तो रिवाज भी बदला

जब खुद की जान पर आई तो हर वाक्य बदला

जीवन भर जात पात का रोना रोया 

ऐसा बीज हमने बोया

सास उखड़ने पर उखड़ जाता हैं

कोई भी धर्म का प्लास्मा खुशी से पाता है

समाज है जनाब खुद ही बदल जाता है

वक्त के आगे है सब लाचार 

रखलो अपना पैसा और विचार 

ये ईश्वर का तांडव है अब भी संभल जाओ

खो दोगे अपना अस्तित्व , अब खुद को बचाओ

वक्त की लाठी में आवाज नहीं है

बाकी तेरे कोई राज नहीं है!



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