एक सुबह
एक सुबह
खिड़की से बहार एक सुबह खुशनुमा थी
सूरज की किरणों से ये सरज़मी रहनुमा थी
पंछियो के शोर ने मुझे जगाया था
उस हवा की लहर को मैंने दिलमें बसाया था
ओस की बून्द जाने कुछ कहे रही थी
जैसे हर सुबह के रूप मैं पत्तो से बहे रही थी
दूर एक मंदिर की मीठी खनक
या फिर उछलते पैरो के पायल की जनक
हर सास मैं ये शबनम की खुशबू समां रही थी
मीठी सुबह मैं घुल जाओ यही बता रही थी।