बचपन....
बचपन....
मुड़ के वापस आये वो ज़िन्दगी कहां
छोड़ आये जहां बचपन वो ज़िन्दगी कहां?
गुज़रते गए वो बचपन के दिन यू ही वक़्त रहते
वापस आये वो पल ऐसी बंदगी भी कहां?
याद करते हैं अब वो गुज़रा ज़माना
उस पल की खुशियो जैसा अब मौसम भी कहां?
गिरते थे सँभालते थे ठोकर खाते थे
ज़माना चला है ठोकर से कहीं परे
हर मोड़ पे खुद को संभाले इस वक़्त भी कहां?