प्रकृति और पर्यावरण
प्रकृति और पर्यावरण
रे !मानव
तूने जो बोया , वही पाएगा।
तू कहाँ और कब जाएगा।
स्वार्थ के कारण प्रकृति उजाड़ी-
कैसे सुख के दिन लाएगा।।
इतना सुंदर जीवन पाया।
फिर भी तू है क्यों भरमाया?
मोटर-गाड़ी लिया सभी कुछ-
साथ प्रदूषण फ्री है लाया।।
एक बात समझ तू ज्ञानी।
मत बन तू अब अज्ञानी।
जहां से खाली हाथ है जाना-
फिर करता तू क्यों मनमानी?
जहर उगलता चमन यहाँ अब।
खोया सारा अमन यहाँ अब।
कदम-कदम पर मरघट मिलता-
जीवन होता हवन यहाँ अब।।
वक़्त अभी है जाग तू।
लगा नही अब आग तू।
बचा अभी कुछ शेष है-
मिटा नही सब भाग तू।।
