प्रकृति याद आती है
प्रकृति याद आती है
न जाने क्यों हमें गुजरा जमाना याद आता है
प्रकृति के प्रेम का सुंदर फसाना याद आता है।
वो अपना गाँव सुंदर-सा,वो पेड़ो की घनी छाया
वो पंछी कर रहे कलरव वो नदियों की मधुर धारा।
वो कोयल की मधुर बोली,रेहकना गाय-बैलों का
जमीं पर बैठकर खाया जो खाना याद आता है।
सुखी जीवन बनाने को प्रकृति का नाश कर बैठे।
उजाड़ा गांव को अपने सुखों की आश कर बैठे
ले आए आपदाओं को कभी सूखा,कभी पानी -
फिसलता जा रहा जीवन तराना याद आता है ।
जहाँ मानव से मानव को रहा न प्रेम अब कोई।
फँसी है बाढ़ में बछिया अकेली वह बहुत रोई ।
बड़ों में न सही बच्चों में है इंसानियत बाकी-
वो बछिया को उठाकर फिर बचाना याद आता है।
जहां में आज भी इंसानियत का बोलबाला है
बड़े ही प्यार से हमने यहां जीवों को पाला है।
जतन औ नेह से रम्मन उठाए गोद में बछिया
बड़े ही प्यार से तेरा (बछिया) रंभाना याद आता है।