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Agnihotri Tripti

Others

1.0  

Agnihotri Tripti

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हाँ मैं एक औरत हूँ

हाँ मैं एक औरत हूँ

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 हाँ , मैं एक औरत हूँ और

 हर औरत का सम्मान करती हूँ।


सुबह से शाम तक और शाम से 

रात तक बिना रुके चलती हूँ।

अपनी हर इच्छा को मारकर

तुम्हारी हर इच्छा का मन से 

मैं पूरा सम्मान करती हूं ।

हाँ मैं एक औरत हूँ।


दिन भर खामोशी ओढ़कर न

जाने कितने गम सहती हूँ।

सबके व्यंग्य बाणों को सुनती हूं ।

तुम्हारी बनाई हर दीवार को 

मैं हँसकर पार करती हूँ ।

हाँ मैं एक औरत हूँ।


प्रकृति ने नाजुकता दी है मुझे

पर पत्थरों से टकराती हूँ।

जुल्म के खिलाफ सर उठाती हूँ ।

तुम्हारे जैसे गम भुलाने के लिए 

मैं विषपान नहीं करती हूँ।

हाँ मैं एक औरत हूँ।


हर चौराहे पर तेरी गंदी 

नजर न जाने कैसे घूरती है मुझे

उसका सामना कर बिन कुछ कहे 

मैं आगे बढ़ती हूं अपमान सहकर भी 

तुम्हें झुलसाने का इंतजाम नहीं करती हूँ ।

हाँ मैं एक औरत हूँ और

हर औरत का सम्मान करती हूँ।



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