ज़वानी की भागमभाग
ज़वानी की भागमभाग
थकी जवानी की अनन्त भागमभाग में
बचपन का लड़कपन जाने कहाँ खो गया
सुनहरे पल आज फिर याद आने लगे हैं
मचलता हुआ सावन जाने कहाँ सो गया
अधूरे सपनों की पोटली बगल में दबाकर
सुबह से शाम तलक बेमतलब भाग रहे हैं
कहीं कोई चुरा न ले आंखों की गहरी नींद
रखवाली में रात-रात भर हम जाग रहे हैं
आंखें भी उकता गई हैं ख़्वाब देखते-देखते
अहंकार के बोझ से आज कंधे झुके पड़े हैं
नजर आती नहीं आज अपनी ही दुनिया
नामालूम किस मोड़ पर थक कर खड़े हैं
मतलबी यारों की महफिल में रातें कटी
फुरसत में कभी सोचना क्या हासिल होगा
नासमझी में जिसे अपना समझ बैठा है
देखना एक दिन वही तेरा कातिल होगा
माना कि सब कुछ हासिल कर लिया है
बरगद की शीतल छांव कहाँ से लायेगा
जवानी के आसमान में आशियाना बनाकर
माटी की सोंधी महक गाँव कहाँ से लायेगा।