जुगत
जुगत
बेगुनाहों को जब मजहब के नाम पर पीटा गया
लाठियों के बदन पर सूजन सी आ गयी
दिल पत्थर के हुआ करते थे सुना था
अब तो जिस्मजान भी चट्टान की हो गयी
सियासत ने पहन लिया तवायफ का घूंघट
मदारी सी दुनिया सारी तमाशाई हो गयी
कड़ी धूप में वह फोडता रहा पत्थरो का सीना
शाम को कहीं जाकर खाने की जुगत हो गयी
ठूसठूस कर ट्रकों में भरे जा रहे थे मजबुर
लगता है जैसे इंसानियत शर्मसार हो गयी
डकारे दे रहा था सफर में वह बच्चों के आगे
सुना है भूख से उसकी मौत हो गयी
कलेजा नहीं फटता अब लोगों की तकलीफों से
लगता है सियासत से पक्की यारी हो गयी।
