जश्न मोहब्बत का
जश्न मोहब्बत का


मिली मुझे वो एक अरसे बाद, अब नजरों से वो दूर न थी,
देख उसे दिल रुक सा गया था, लेकिन अब वो दिल के करीब न थी।
उसको देख लगा, मुझसे कुछ कहना चाहती है,
उम्मीद से देखे मुझे कुछ ऐसे, शायद मेरी शिकायत करना चाहती है,
सवालो का ढेर बहुत था उसके जैसे मेरे जहन में,
पूछूँ मैं उसे कुछ पहले, वो उनसे भी बचना चाहती है।
पुरानी बाते भूल के फिर से, मुझसे नजदीकियाँ बढ़ा रही थी,
बाहों को पकड़े वो मेरे, हाथो से मुझे बांध रही थी ।
सीने में सर रख अपना, शायद धड़कन सुनना चाहती है,
भूलना चाहूँ नादानियाँ मै उसकी, पर वो दर्द की याद दिलाती है।
कोशिश उसकी देख दिल मेरा भी, उसकी ओर झुक रहा था,
गले लगाने की चाह थी उसको, पर ना जाने क्यों रुक सा रहा था।
भूली नहीं वो कमजोरी मेरी, होठों से मुझे रिझा रही थी,
दीवाना था मैं उसकी आँखों का, आँखों से ही मुझे चुरा रही थी।
शिकायत भरी आँखों में उसकी, एक सवाल की परछाई थी,
जैसे पूछ रही थी आँखें उसकी, क्या कभी तुम्हें मेरी याद भी आई थी?
दिल की मैने एक न सुन के, दबे होठ उसे कह दिया,
हाँ, याद तुम आती बहुत थी, पर अब तुम बिन जीना सीख गया।
दिया जख्म भरा न अब तक, भरोसे की चोट जो तुमने पहुँचाई थी,
सपनो में आती थी हर दिन, वो तो शुरुआत एक की परछायी थी।
टूट गया था बिल्कुल पूरा, जब तुम्हारे झूठ की सच्चाई सामने आई थी,
खु़श हूँ आज तुम-बिन मै, हो सके तो वापस मत आना,
नहींं भूल पाऊँगा जख्म वो अपने,
जो तुम्हारी एक झलक पाने के लिये मैंने खाई थी ।
दर्द से लाल थी आँखे मेरी, सांसो का भी रुकना तय था,
किया था तुमने हशर वो मेरा, जिसका मुझे सबसे भय था।
भूल गया अब ये दिल भी तुम्हे, जिस तरह तुमने मुझे भुलाया था,
मान चुका हूँ गलती अपनी, जब अपना खुदा ही तुम्हे बनाया था।
भूला नहींं हूँ मैं उन पलों को, जब तुमने रिश्ता तोड़ा था,
साथ मांगा था मैंने तुम्हारा, और तुमने मुझे अकेला छोड़ा था,
फिर भी आया मै तुम्हें मनाने और तुमने बेरुखी से मुँह मोड़ा था।
मुझे भूल शायद तब तुमने, किसी और से दिल लगा लिया था,
तुमसे प्यार की उम्मीद जो की थी, उसका सबक मैने पा लिया था।
अब परवाह नहींं मुझे चाहत की, बस मुझमें तुम्हारा जिक्र नहीं,
खुश रहो या बर्बाद रहो तुम, अब इसकी मुझे कोई फिक्र नहीं।
मेरी तीखी बातें सुन के, उससे चुप रहा न गया,
बोलती कुछ वो मुझसे पहले, हाथों से मुझे जवाब दिया।
भूली नहीं थी मैं तुम्हें एक पल भी, तुम्हारी हर बात याद आती थी,
भूल न जाओ कहीं मुझे तुम,
बस यही फिक्र हर रोज मुझे सताती थी।
हाँ, चली गई थी तन्हा करके, वो मेरी मजबूरी थी,
तुम्हारे सिवा किसी को न चाहा, और ये बात बतानी जरूरी थी।
चाहा था तुम्हें मैंने भी दिल से, तुम को दिल में समाई हूँ,
नहीं तोड़ूँगी अब कभी दिल तुम्हारा, बस यही बताने आई हूँ।
उसकी इन सब बातों ने, मेरे दिल को मना लिया है,
प्यार है तुमसे आज़ भी उतना, उसको मैंने बता दिया है।
हाँ, अब भरोसे में थोडा़ वक़्त लगेगा, पर दिल की हसरत पूरी हो,
दूर न जाना मुझसे अब कभी तुम, चाहे कितनी भी मजबूरी हो।