जल बचाइए
जल बचाइए


एक नल झर झर झरता था
प्यासे को तृप्त नल करता था।
माएँ आती सुबह शाम
माँ की गगरी नल भरता था।
बालक आते दौड़ लगाते
प्यास अपनी जल से बुझाते
खेल खेल में भीगते जाते
रिक्त कभी भी न जल करता था।
एक नल.......
नल का जल अब कम आता था
सबको अब नल कहाँ सुहाता
पर सूनेपन से नल डरता था
एक नल झर.......
पेड़ों की हुई खूब कटाई
बर्षा फिर न धरती पे आई
जल का संकट फिर गहराया
नीर नल में फिर न आया
कथा अपनी अमर करता था
एक नल झर झर झरता था।।।।