पुरुषार्थ
पुरुषार्थ
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काम क्रोध लोभ सब
सर्वनाश के मूल,
ये जो फटकें पास तो
बुद्धि हो निर्मूल।
बुद्धि हो निर्मूल जो
कराए कोटि पाप,
व्यर्थ फिर हो जाएगा
जीवन भर का जाप।
हो यदि पुरुषार्थ तो
कर्म कराए शुद्ध,
इनसे जो हो जाते मुक्त
वही कहलाते बुद्ध।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
पुरुषार्थ के रूप,
हृदय से करे जो पालन इनका
वही कहलाये धरा का भूप।