जज़्बात
जज़्बात
माना कि एक लड़की हूं,
पर हूं तो इंसान ही ना।
माना कि चाहा था बेटा आपने,
पर हूं तो आपका ख़ून ही ना।
हर ख्वाहिश पूरी की आपने,
फिर भी फर्क जता ही दी ना।
बेटे गलत हो कर सही होते हैं
क्यूंकि है वो कुल के चिराग ही ना।
फिर क्यू ना दिखाया वो विश्वास बेटी पर,
परवरिश मिली उसे भी कुछ ऐसी ही ना।