STORYMIRROR

Rajit ram Ranjan

Tragedy

3  

Rajit ram Ranjan

Tragedy

जिस्म टुकड़ा-टुकड़ा बंट गया है

जिस्म टुकड़ा-टुकड़ा बंट गया है

1 min
269

अब दुखता है मन मेरा 

अरमान निकलते हैं दिल के 

बेहया, बेशर्म ने जुल्म ऐसा ढाया है 

जिस्म टुकड़ा-टुकड़ा बंट गया है !


दिले अरमान अब कुछ नहीं 

ना ही किसी की जरूरत है, 

मेरी जिंदगी है,

मैं जिऊंगा इसे 

ये बड़ी खूबसूरत है। 


मेरी आँखों की,

जो चमक है,

मैंने उसी से पाया है, 

अंधेरों में ये जो दिखता है 

उसी का ही साया है।

 

इतना दर्द दिया है,

उसकी यादों ने कि 

जिस्म टुकड़ा-टुकड़ा

बंट गया है !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy