जिंदगी...
जिंदगी...


ऐ, जिंदगी क्यों इतनी उदास हो तुम,
हम तो अब भी जीने की ख़्वाहिश रखते हैं।
कुछ यूँ जिंदगी से दिल लगा बैठे हम,
जो कुछ बचा था, वो भी लुटा बैठे हम।
एक दिन जिंदगी का हिसाब लगाने बैठे हम,
ख़ुशियाँ हज़ार थी, तो ग़म भी नहीं थे कम,
एक तरफ ख़ुशियाँ रखी, एक तरफ ग़म,
ग़म का पल्ला झुकते देख फिर रुक गए हम।
हम किन -किन ख़्वाबों को पूरा करते,
जिंदगी थी एक, और ख़्वाब अनेक।
ऐ, ज़िन्दगी तुमसे बहुत उम्मीदें हैं,
यूँ हमें हैरान कर रास्ते पर ही मत छोड़ देना,
तुम्हारा अंजाम तो मंज़िल है,
हमारे साथ मंज़िल तक जरूर चलना।