नेता
नेता
हाथ जोड़ देखो तो गरीब के द्वार पर खड़े हैं,
लगता है चुनाव का वक्त है इसलिए तो नेताजी सड़क पर उतरे हैं,
सफेद लिबास और वादों का माला पहने,
कड़ी धूप में क्या यह जनता के लिए मेहनत कर रहे हैं या वोटों के बैंक भर रहे हैं,
वही वादे, वही भाषण इस बार क्या कुछ नया है,
पुरानी वादों को पहले पूरा करेंगे तभी तो नए वादे करेंगे,
और कुछ ना मिला तो जाति धर्म की बात करेंगे,
चुनाव का वक्त आया है इसलिए तो सड़कें और अस्पतालों की बात कर रहे हैं,
वरना नेताजी को फुर्सत ही कहीं थी अपनी जेब भरने से।