एक लड़की....
एक लड़की....
तुम जुगनूओं से करते हो घर रोशन अपना,
मैं खिड़कियों पर आफताब का इंतजार करती हूं,
तुम गुलदस्ते पर रखी फूलों का दीदार करते हो,
मैं गुलशन पर बिखरे फूलों का दीदार करती हूं,
तुम बंद कमरे के एक कोने पर पड़े
झूले पर बैठ किताबें पढ़ते हो,
मैं दरख़्तों की टहनियों पर बैठ गुलजार को पढ़ती हूं,
तुम बरसते पानी को देख मुस्कुराते हो,
मैं उसमें भींग कर मुस्कुराती हूँ।
तुम्हें टपकते बूंद की आवाज पसंद है,
मुझे दरिया की धड़कन की आवाज़।
तुम माज़ी में खोए रहते हो,
मैं मुस्तकबिल का इंतजार करती हूँ।
तुम मुख्तलिफ से हो,
मैं पूरी कायनात समेटे हुए हूँ।
तुम्हारे रुख़सार पर ख़ामोशी है,
मेरे रुख़सार खिलखिला रहें है।
तुम्हारे पास तो परवाज है,
मैं तो बिना परवाज के उड़ने की कोशिश करती हूं।
तुम रंगों को ढूंढते हो,
मैं सफेदी पर रंग बिखेरती हूँ।
तुम किताबों में कहानियाँ ढूंढते हो,
मैं आँखों पर लिखी कहानियाँ पढ़ती हूँ।