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Ritu Agrawal

Tragedy

4.5  

Ritu Agrawal

Tragedy

ज़िंदगी का फलसफ़ा

ज़िंदगी का फलसफ़ा

1 min
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चेहरे पर बढ़ रहीं कुछ महीन सलवटें, बालों में चाँदी की चमक आ रही है।

गुजरते वक्त के साथ- साथ , इस बंद मुट्ठी से रेत फिसलती जा रही है।


कुछ अनुभवों का खजाना है मेरे पास, तो कुछ गलतियों की भी फ़ेहरिस्त है।

हर गलती से सदा सबक सीखा है, इल्म की ये रोशनी चेहरे को नूरानी बना रही है।


जिंदगी के आधे बसंत, दूसरों की खातिर, शर्तों पर, उधार की जिंदगी ही जीये।

जब खुद का ख्याल आया तो महसूस हुआ, अब ये साँसें दरकती जा रहीं हैं।


अब ज़रा खुद से मिलना है, अपनी सुनना और अपने मन की ही करना है।

क्योंकि मेरे आँसुओं से भी, ठंडे रिश्तों पर जमी बर्फ़, पिघल नहीं पा रही है।


शायद इसलिए नींद से जागी हूँ मैं अब कि खुद से भी थोड़ी सी मोहब्बत कर लूँ।

जब देखती हूँ आईना तो दिखता है, खुशगवार जिंदगी, बाँहें पसारे बुला रही है।


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