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Kamal Purohit

Drama

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Kamal Purohit

Drama

जिंदगी और पैसा

जिंदगी और पैसा

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जिंदगी पैसे कमाते बीतती ही जा रही

चार दिन की जिंदगी में रूह तड़पी जा रही।


ये सदी इक्कीसवीं है, मोल पैसे का दिखा

दोस्ती या दुश्मनी पैसे से बढ़ती जा रही।


ज़श्न तो मैं जीत का हरदम मनाता आ रहा

हारने की वज़ह मुझसे क्यों न समझी जा रही।


पड़ गया निन्यानबे के फेर में जो आदमी

रात भी उसकी तो दिन के जैसी होती जा रही।


होश में आ जा "कमल" अब देख दुनिया पास से

पैसे जितने पास मुश्किल उतनी बढ़ती जा रही।


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