जीवन
जीवन
जीवन जैसे बंजारे पंछीओ की तरह घूम रहा है
कहा मिले मन का मित क्या पता बस घूमे जा रहा है
छीतीज की खोज मे चले थे अभी घर का पता कहा है
जितना आगे जा रहा हू,उतना लक्ष्य दूर जा रहा है
डर इस बात का है कही भीड़ मे खो ना जाऊँ
कहीं अपने वजूद को ढूंढ ना पाऊँ।