फौजी का वसंत
फौजी का वसंत
तुम्हारे हिस्से तो यह लेकर आया खुशियाँ अनन्त।
पर क्या मालूम है, कैसा होता है फौजी का वसंत।
मन तो उसका भी हर्षाया होगा, देख दिक्-दिगन्त।
रोके मगर उसको रहता है, उसका कर्तव्य प्रचण्ड।
याद आती है इनको भी अपने परिवारों की,
पर कर सकते हैं केवल कल्पनाएँ मनगढ़ंत।
"क्या सूना होगा मेरा आँगन मेरे बिन या फिर,
आ पहुँचा होगा मेरे 'घर' भी इस बार वसन्त।"
तुम्हारे हिस्से तो यह लेकर आया खुशियाँ अनन्त।
पर क्या मालूम है, कैसा होता है फौजी का वसंत।
धूप, ताप, पाला सब सहकर भी है कर्तव्य प्रथम।
हैं सब 'अपने' जान से प्यारे परन्तु देश सर्वप्रथम।
चूक नहीं कर सकते ये जरा भी देश- रक्षा हेतु।
है कर्तव्य पालन का यह दृष्टांत अद्भुत -अनुपम।
तुम्हारे हिस्से तो यह लेकर आया खुशियाँ अनन्त।
पर क्या मालूम है, कैसा होता है फौजी का वसंत।
वृद्ध माता-पिता को भी छोड़ जाते हैं अविलम्ब।
मात- पिता भी रह जाते हैं बिना किसी अवलम्ब।
जनक-जननी करते गोद न्यौछावर भारत माता पर।
स्वयं एकाकी भुगतते रहते वृद्धावस्था का दण्ड।
तुम्हारे हिस्से तो यह लेकर आया खुशियाँ अनन्त।
पर क्या मालूम है, कैसा होता है फौजी का वसंत।
छोड़ अकेले जाने पर अपनी नवोढ़ा दुल्हन को,
हृदय तो इनका भी होता ही है खण्ड - खण्ड ।
पर नहीं कर सकते क्षीण हृदय क्षण भर को भी,
रखना है भारत माँ का सुहाग अक्षुण -अखण्ड।
तुम्हारे हिस्से तो यह लेकर आया खुशियाँ अनन्त।
पर क्या मालूम है, कैसा होता है फौजी का वसंत।