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Richa Pathak Pant

Inspirational

4.9  

Richa Pathak Pant

Inspirational

स्वयंसिद्धा - शिव एवं शक्ति

स्वयंसिद्धा - शिव एवं शक्ति

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ओ! खंडित - विखंडित स्त्रियों!

उठो, अपना निर्माण करो!

ओ! भग्न-हृदयाओं, मत

विधाता की सृष्टि का अपमान करो।


तुममें शक्ति है स्वयं विखंडित

होकर भी अन्य को संबल प्रदान करो।

तुम चाहो तो मृत में

भी प्राण भरो।


शक्ति बिना तो स्वयं शिव

भी असमर्थ हैं।

शक्ति बिना सृष्टि की कल्पना

ही व्यर्थ है।


कूद पड़ी जब

हवनकुण्ड में सती

कर ही पाया क्या ब्रह्माण्ड का

सबसे सामर्थ्यवान भी पति।


तुममें शक्तियाँ अपार हैं।

उत्तरदायित्वों का भार है।

उठो उन दायित्वों का भी

वहन करो।

ये न कि केवल अन्याय सहन करो।


तुम विशेष प्रयोजन हेतु,

इस धरा में भेजी जाती हो।

पर क्या वह उद्देश्य अपना

ढूँढ भी पाती हो।



तुम सृष्टि की रचना ही नहीं,

स्वयं में भी सृष्टि हो।

काश! तुममें यह समझने की

भी दृष्टि हो।


निर्माण और विनाश दोनों

तुम्हारी कोख में पलते हैं।

अब यह तुम पर है किसका

चयन तुम करती हो।

और धरा को 'क्या' देने का

'वचन' भरती हो।


तुम क्यों पुरुष बनने को

ललचाती हो।

जबकि स्त्रीत्व में कहीं अधिक

शोभा पाती हो।


यदि नहीं मानती मेरी बात

तो उठाओ मुख अपना,

करो पश्चिम पर दृष्टिपात।


पुरुष बनने की चाह में

पश्चिम की नारी ने क्या पाया है।

बन भोग्या दासत्व ही

तो अपनाया है।


तुम महालक्ष्मी, तुम महासरस्वती,

महागौरी तुम अन्नपूर्णा।

तुम से ही सब भण्डार भरे।

तुम हो तो धरा में स्वर्ग है।

तुम बिन तो देवलोक भी नर्क है।


सारे सुर - ताल मिला दे तुम्हारे,

नूपुर की एक झंकार।

तुम नहीं तो श्मशान,

ये सारा संसार।


तुम खुद ही अपनी शक्तियों

का भान करो।

दूसरों से पहले, तुम खुद,

स्वयं का सम्मान करो।


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