नाते-रिश्ते
नाते-रिश्ते
वक्त ज़रूरत पर काम आने
को, बाँध कर रखी थी
जो रिश्तों की पोटली।
खोली जब मुसीबत में,निकली
अंदर से बिल्कुल खोखली।
तंग आकर अपनों से जब
अनजानों में आस टटोली,
जान लिए हथेली पर,
निकल आए कई हमजोली।
मुसीबत में जो काम आए,
वही थी दोस्तों की टोली।
चुराई निगाहें जिन्होंने उनसे भी,
रखा दुआ-सलाम, दिवाली-होली।
चढ़ी न दुबारा आँच पर हाँड़ी
मगर, काठ की जो थी, ली।
छोड़ी जबसे सारी आशाएँ,
हर आस जैसे पूरी हो ली।