वियोग
वियोग
सृष्टि मे जहाँ-जहाँ भी योग है,
अन्त में उसका बस वियोग है।
प्रमाण ही जो देखना है तुमको
उच्छवास ही जो करना है तुमको
इस सकल विराट मे देखो
प्रकृति के पावन विहार मे देखो
सुषुप्त बीज के महाभाग से ही
होता रहा नही क्या सदैव ही
धरा पर नभ से स्नेह वृष्टि वर्षण।
धरा के उर्वर गर्भ मे जागृत
नभ के स्निग्ध प्रेम से सिंचित
वो बीज जो करता भव्य पदार्पण
वसंत को करता जो अनुराग अर्पण
वर्षों को तनो शाखों में बढ़ाता
अन्त में नभ-धरा को होता नहीं क्या
उसी विशाल वृक्ष का क्षय उद्भासित !
हा ! सृष्टि मे जहाँ-जहाँ भी योग है,
अन्त में उसका बस वियोग है।