सोने की चिड़िया
सोने की चिड़िया
तू थी सोने की चिड़िया,
तेरी थी धानी चुनरिया।
स्वच्छ स्वच्छंद बहती थी नदियां,
मंगल गान सुनाती थी कोयलिया।।
मधुर - मधुर गरजते थे मेघ,
हरियाली फैली थी चहुं ओर।
खग मृग करते थे कोलाहल,
जंगल मे भी होती थी भोर।।
बहती थी मदमस्त हवाएं,
मीलो पैदल चलते थे लोग।
पगडंडियों से करते थे बातें,
प्रफुल्लित मन नही था कोई रोग।।
छल कपट से थे सब कोसो दूर,
दिलो में अपनापन था भरपूर।
प्यार बरसता था हर आंगन,
जैसे झम-झम बरसते थे बादल।।
ना तेरा मेरा का था किस्सा,
ना रहता था कोई भूखा नंगा।
प
रिंदों का भी था खुशनुमा बसेरा,
धरती आकाश पर ना था पहरा।।
समय भी चलता था धीरे-धीरे,
उदित सूर्य की मिठी थी किरणे।
समय का ना आभाव था,
चित्त हर हाल मे खुशहाल था।।
माटी की सोंधी सोंधी खुशबू ,
भाती थी हर जन-मन को।
ना जाता था कोई परदेश,
प्रिय था अपना देश सबको।।
वसुंधरा को सब चूमते थे,
माता- पिता को पूजते थे।
नारी का होता था सम्मान,
बाला का देवी सा था मान।।
बच्चा - बच्चा गाता था,
शूरवीरो की जय गाथा।
हर बालक में बसते थे महाराणा प्रताप,
बाला में बसती थी लक्ष्मीबाई के जज़्बात।।