रिश्तों में गांठ
रिश्तों में गांठ
जब स्वार्थ लोभ का पर्दा,
आंखों पर पड़ गया हो।
जब अहंकार का दानव,
हृदय में घुस गया हो।।
जब खास उद्देश्य से बोले,
मधुर - मधुर वचन वो।
जब हर कार्य के पीछे,
अपना ही मकसद साधे वो।।
जब करें दिखावा अपनेपन का,
शब्दों के जाल नित बुने वो।
जब स्वयं को श्रेष्ठ,
दूजे को निरीह समझे वो।।
जब कटु वचनों से,
मन घायल करें वो।
जब तेरा - मेरा का,
ही राग अलापे वो।।
तब....
तब टूट जाता है,
सब्र का बांध।
और पड़ जाती है,
रिश्तों में गांठ।।