गजल
गजल
कोई बात दिल में थी मगर मैं कह ना सका
भावनाओं का बवंडर था जो बहते बहते बह ना सका
बड़े घाव जिन्दगी ने दिये बेबाकी से सहे है
ये तो ठेस दिल पे लगी थी मैं सह ना सका
एक राह मेरी तरफ़ से उन तक जाती थी मगर
दरमियाँ एक परवत था ज़ो कभी ढह ना सका
मैं उनकी जिन्दगी से कभी जाता ना शायद
मुझे रोकने के लिए वो दोस्त कुछ कह ना सका
नादां परिन्दों की परवाज हवायों के दम पे थी
मगर हवायों का रुख कभी उस तरफ बह ना सका
वक्त के थपेड़ों ने बहुत कुछ बदल डाला रूमिन्दर कैसे पहचानोगे
तेरे ख्वाबों का शहर भी पहले जैसा रह ना सका।