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Govardhan Bisen

Abstract

4.8  

Govardhan Bisen

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ऋतू बसंत की शान

ऋतू बसंत की शान

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(वर्ण संख्या - १६, यती - ८)

येनं भारत देशमा, सय ऋतूमा महान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||धृ||


दिसं मोवरी खेतमा, सुरू भयेव बसंत |

होय रहीसे थंडीको, आता धिरुधिरु अंत ||

दिसं धरती पिवरी, शिवारमा आयी जान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||१||


खिली उंबई गहूकी, बार आंबाला आवसे |

बगिचामा कोयार बी, कूहू कूहूके गावसे ||

बड़ी मोहक फिपोली, उड़ासेती रहुऱ्यान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||२||


खेल देखो बादरमा, रंग बिरंगी रंगको |

दिसं सुंदर केतरो, वऱ्या मस्त पतंगको ||

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vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">वऱ्या सुर्यको तेजलं, चमकसे आसमान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||३||


गोड़ी रव्हसे हवामा, सुरू होसे पानझड़ी |

हर अंतको बादमा, नवी उकलसे कड़ी ||

सांग नवी सुरुवात, नवो पालवीको पान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||४||


चोला बसंती पेहर, नारी दिससे सुंदर |

बसंतको पंचमीला, सृष्टी दिसं मनोहर ||`

होसे सरस्वती पुजा, अज सब मिलशान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||५||


राजा भोजकी जयंती, हर गावमा मनावो |

पोवारीको स्वाभिमान, हर मनमा जगावो ||

होय रहीसे जागर, आता उचलो कमान |

झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान ||६||


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