ऋतू बसंत की शान
ऋतू बसंत की शान
(वर्ण संख्या - १६, यती - ८)
येनं भारत देशमा, सय ऋतूमा महान।
झलकसे धरापर, ऋतू बसंतकी शान।।धृ।।
राई दिससे खेतमा, सुरू भयीसे बसंत।
होय रहीसे थंडीको, आता धिरुधिरु अंत।।
दिसं धरती पिवरी, शिवारमा आयी जान।।१।।
ओंबी खिलंसे गहूकी, बार आंबाला आवसे।
बगिचामा कोयार बी, कूहू कूहूके गावसे।।
बड़ी मोहक फिपोली, उड़ासेती रहुऱ्यान।।२।।
खेल देखो बादरमा, रंग बिरंगी रंगको।
दिसं सुंदर केतरो, वऱ्या मस्त पतंगको।।
वऱ्या सुर्यको तेजलं, चमकसे आसमान।।३।।
गोड़ी रव्हसे हवामा, सुरू होसे पानझड़ी।
हर अंतको बादमा, नवी उकलसे कड़ी।।
सांग नवी सुरुवात, नवो पालवीको पान।।४।।
दिन बसंत पंचमी, सृष्टी दिसं मनोहर।
चोला बसंती पेहर, नारी दिससे सुंदर।।
होसे सरस्वती पुजा, अज सब मिलशान।।५।।
राजा भोजकी जयंती, हर गावमा मनावो।
पोवारीको स्वाभिमान, हर मनमा जगावो।।
होय रहीसे जागर, आता उचलो कमान।।६।।
