चुप्पी
चुप्पी
तेरी चुप्पी बहुत कुछ कह जाती है
किसी गलत का साथ देना
और सब जान के मौन रहना
दोनों ही गुनहगार है
लोगों पे बीते तोह ठीक
अपने पे बीते तोह गलत
यह पैमाना कहा से लाते हो
रसूकदार पैसे के आगे बिकता तेरा ईमान
ऐसी चाटुकारिता है देखो जनाब
वह क़त्ले आम करे हो निशब्द तुम
और हमारी उफ़ तुम्हें चुभती है
साम दाम दंड भेद
के परे भी वह है
जो सब देखता है
जो नश्वर है हमारा ईश्वर है
उसके पायदान में कितने पैसे
कमाए मायने नहीं रखता
रखता है तोह सिर्फ कितने
अच्छे कर्म तूने किए है
फिर ना कहना अपने साथ अन्याय हुआ है
नर नारी को जो मिले वह उसी की काया है
