जीवन की वास्तविकता
जीवन की वास्तविकता
जीवन दुखों से भरा हुआ है..
अगर नहीं कुछ पाये हैं तो पाने का दुख ..
अगर कुछ पा भी लिये हैं तो उसे बचाने का या
बनाये रखने का या उसे बरकरार रखने का दुख..
अगर बचा नहीं पाये बरकरार नहीं रख पाये
तो फिर उसे खोने का दुख ..
और इस कठोर सत्य से हम भलीभांति अवगत हैं
कि इस मृत्युलोक में कुछ भी शाश्वत नहीं !
फिर भी हम कुछ -न- कुछ पाना चाहते हैं
और उसे बचाना चाहते हैं,
या यूं कहें कि बरकरार रखना चाहते हैं...
जो कि इस लोक में सम्भव नहीं!
अंतत: जीवन दुखों से भरा हुआ है...
सम्भव हो तो इन दुख के पलों में से ही
क्षणिक खुशी के पलों को ढूँढ़िये...