जीवन का सत्य
जीवन का सत्य
कोने में चुपचाप ज़िन्दगी मुस्कुरा रही थी
मानो उस पल मुझसे वो कुछ छुपा रही थी
एकटक बैठे, उसे निहारे जाऊँ मैं....
लगा मुझे कि मुझको वो कुछ जता रही थी
कुछ क्षण में फिर देखा तो वो बुला रही थी
पास गई और पूछा, तू क्या बता रही थी
एकटक बैठे, उसे निहारे जाऊँ मैं....
कुछ न बोली , जाने क्या गुनगुना रही थी
फिर कुछ क्षण में, सिर को मेरे सहला करके
प्यार से मुझको गोदी में वो सुला रही थी
एकटक बैठे, उसे निहारे जाऊँ मैं....
बोली...यही है सत्य...और कबसे तुझको सिखा रही थी।
