जीजिविषा
जीजिविषा
यहाँ दर्द का छलछलाना मना है ,
तबस्सुम को बेपर्दा करना मना है !
उदासियाँ पढ़ न ले कोई इन आँखों में ,
काले चश्मे का आवरण हटाना मना है !
गर्म रेगिस्तान की तपती रेत पर ,
उँगली से मुस्कुराहट लिखना मना है !!
दूर तक कोई राह नहीं आती नज़र ,
मगर थक हार कर रुक जाना मना है !
बहती रहती हूँ हमेशा एक दरिया की तरह ,
पर ख़ुद से ख़ुद की प्यास बुझाना मना है !!
कब तक जकड़ कर रखूँ स्वयं को बंदिशों में ,
अपने अरमानों के पंख फैलाना मना है !!
मन बैरागी सा बन उड़ जाना चाहता है खुले आसमां में ,
पर ज़िन्दगी की मज़बूत बेड़ियाँ तोड़ना मना है.....