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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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होली का गुलाल

होली का गुलाल

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दर्द को अपने दवा बनाकर

ठोकरों को भी शिक्षा बनाकर

प्रफुल्लित सा

अपना हाल बनाता हूँ

ज़िंदगी को अपने मैं तो

होली का गुलाल बनाता हूँ...


पीड़ा को अपनी सुख बनाकर

सकारात्मक अपना रुख बनाकर

उत्साही अपनी चाल बनाता हूँ

मैं तो यौवन को भी अपने 

होली का गुलाल बनाता हूँ...


मायूसी को मुस्कान बनाकर

माँ बाप की दुआओं को ढाल बनाकर

सारे अफसोस और मलाल मिटाता हूँ

जीवन को अपने मैं तो

होली का गुलाल बनाता हूँ...


निराशा को अपनी आस बनाकर

शंकित मन मे भी विश्वास जगाकर

पराक्रम को अपने 

और भी विकराल बनाता हूँ

यौवन को अपने मैं तो

होली का गुलाल बनाता हूँ...


भूत सबक है, भविष्य सुधारने का

वर्तमान कर्म क्षेत्र संवारना

है मुझे

नही मैं ,यू ही गाल बजाता हूँ

जीवन को अपने मैं तो

होली का गुलाल बनाता हूँ..


बिखरी हिम्मत को फिर समेटकर

ग्लानि और पश्चाताप को लपेटकर

विजय तिलक से

अपना भाल सजाता हूँ

जीवन को इसी तरह से प्यारे

होली का गुलाल बनाता हूँ


नकारात्मक विचार रोकना चाहेंगे तुझे

और विकार भी खूब जोर लगाएंगे

ऐसे में संयम नियम की


मैं तो मशाल जलाता हूँ

यौवन को इस तरह से अपने

होली का गुलाल बनाता हूँ...


बाधाओं को अब चीरकर

साधारण दूध को खीर कर

धीरज से पलो को

महीने और साल बनाता हूँ

वादा है खुद से 

जीवन को अपने मैं तो

होली का गुलाल बनाता हूँ...

होली का गुलाल बनाता हूँ...


       


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