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Bhavna Thaker

Tragedy

3  

Bhavna Thaker

Tragedy

जिए जा रही हूँ

जिए जा रही हूँ

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ज़िंदगी के मोहक तानों बानों में उलझे जिए जा रही हूँ, 

ख़्वाहिशों की सुनहरी कैद में तड़पते बिलखते जिए जा रही हूँ। 


नैनों के दृग में स्वप्नों की क्षीण सरिता पाले जिए जा रही हूँ, 

जीवन में तूफ़ान के गीले बादलों का गान भरे जिए जा रही हूँ।

 

किया बहुत तोड़ मरोड़ संघर्षों के मधुबन सजाए जिए जा रही हूँ,

अज्ञात दिशा नाहि  मंज़िल का पता कटीली राहों पर चलते जिए जा रही हूँ।


तमस घिरी ज़िंदगी में वितान नहीं उजियारा उम्मीदों के चिराग जलाएं जिए जा रही हूँ,

तृषित लब हंसी को तरसे मुखौटा बनावट का मुख पर सजाए जिए जा रही हूँ।


आहटहीन उर का अंबर, ख़्वाब बड़े भयंकर फिर भी स्वप्न मंजूषा लिए जिए जा रही हूँ, 

उम्र के अस्ताचल पर आग लिए सुहानी भोर तरसते उदासीन हर शाम जिए जा रही हूँ।



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