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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Tragedy

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नमिता गुप्ता 'मनसी'

Tragedy

झूठ-मूठ का मनुष्यपन..

झूठ-मूठ का मनुष्यपन..

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गर्मी में भी 

सबसे ज्यादा खीझ मनुष्य को हुई,

उसने हवाओं को कैद किया

बना डाले ए. सी.

और.. रही-सही हवा भी जाती रही !!


सर्दियों में भी

सबसे ज्यादा वही ठिठुरा ,

उसने कोहरे ढकने की कोशिश की 

और..धूप भी रूठी रही

कोहरा भी जिद पर अड़ा !!


बारिश में भी सबसे पहले सीले

मनुष्य के ही संस्कार,

परिणामस्वरूप

बारिश नहीं रही अब पहले जैसी !!


बसंत में भी

उसको नहीं भाया फूलों का खिलना ,

उसने पेड़ काटे....जंगल खोदे,

परिणामत:

वह भटक रहा है

अपने ही कंक्रीट के जंगलों में !!


और इस तरह..

वह अंत तक ढोता रहा

अपने झूठ-मूठ के मनुष्यपन को !!



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