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AKSHAT YAGNIC

Abstract

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AKSHAT YAGNIC

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जब मिली उनसे नजरें

जब मिली उनसे नजरें

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होश अपना खो बैठा मैं

जब मिली उनसे नजरें

अमावस सा था जीवन मेरा

था उसमें घनघोर अंधेरा


खिल उठा दिए की लौ सा

जब मिली उनसे नजरें

देख कर उनकी आंखों में


दिखा मुझको अपना संसार

सब कुछ भूल गया एक ही पल में

मिला मुझे जीने का सार

उनकी आंखें थी प्रकाश से जगमग


हुआ मेरा कठोर ह्रदय डगमग

मन में सोचा मैंने एक बार

जी सकता हूं मैं इनमें देखकर कई बार।


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