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AKSHAT YAGNIC

Abstract Inspirational

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AKSHAT YAGNIC

Abstract Inspirational

मेरे मन की दुविधा

मेरे मन की दुविधा

1 min
80


क्या चाहता है तू मेरे मन ?

क्यूँ है तुझको ये अजीब सी उलझन? 

आखिर क्यूँ है तू किसी उत्तर की खोज में? 

कहाँ भटक है रहा है तू अपनी ही मौज में ? 


वह क्या है जो दे सके तुझे असीम शांति 

वह क्या है जो दूर कर दे तेरी हर भ्रांति 

मैंने तुझे सिखाया है एक सीमा तक ही सोचना 

मैंने तुझे सिखाया है उत्तर को कैसे है खोजना 


फिर भी तू बेलगाम कहाँ रहता है घूमता 

क्या है जो तू हर पल ऐसे है ढूँढता 

इस संसार में सोचने के लिए बहुत सारी बातें 

परंतु सभी बातों पर नहीं खराब करेंगे

हम अपनी रातें 


मुझे सोचना है जन कल्याण के विषय में यह सत्य है 

परंतु मेरा कल्याण होगा तभी वह कर पाऊँगा

यह भी एक तथ्य है 

इसलिए पहले तू सीख ले खुद से प्रेम करना 

पहले तू छोड़ ही दे बेवजह यूँ डरना। 


फिर ही खुलेंगे तेरे बंद हो चुके द्वार 

फिर ही होगा तेरा सही मायने मे उद्धार



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