जालिमा
जालिमा
हम खड़े बुत से बस मुस्कुराते रहे
वो दिल पर निशाने लगाते रहे
वो तो नजरें मिलाते चुराते रहे
हाल-ए-दिल हम उन्हीं से छुपाते रहे।
बात करने की कोशिश नाकाम रही
सामने उसके जुबां दगा दे गई
वो आदाब करके चलते बने
हाथ जोड़े हम बुदबुदाते रहे।
छटपटाती रही दिल में बेबसी
होठों पर रुकी उसके कातिल हँसी
वो हँस हँस के दिल को लुभाते रहे
जख्मी दिल पे हम मरहम लगाते रहे।
तम्मनाएँ दिल में मचलती रही
वह धूप से छुपती निकलती रही
वह जम के बरस के नदी हो गई
हम किनारों पर चप्पू चलाते रहे।
इश्क़ करने की मुझको वजह मिल गई
दिल की परवाज को जैसे हवा मिल गई
आरजू वो नई सी जगाते रहे
हम दिल को समझाते बुझाते रहे।
हम खड़े बुत से बस मुस्कुराते रहे
वो दिल पर निशाने लगाते रहे।

