जागती आंखों के सपने।
जागती आंखों के सपने।
भोर के सपने कहां सच हो रहे हैं।
जागती आंखों के सपने सो रहे है।
जिद्दी सपनों में भरा रंग स्वप्न चोरी हो गए।
मेहनतें जाया हुई अंदाज सारे खो गए।
गरीबी फूली फली वो पैसे वाले हो रहे हैं।
भोर के सपने कहां सच हो रहे हैं।
परिश्रम करके सभी ने अन्न पैदा कर दिया।
खरीदी केंद्रों में वर्षा से सड़ा कर रख दिया
देश में बरबादियों के नए आलम हो रहे है।
भोर के सपने कहां सच हो रहे हैं।
मेहनत हमने करी वह तिजोरी भरते रहे।
दुर्दशा है देश की पर ऐश वो करते रहे।
हाथ खाली रह गए तकदीर को हम रो रहे हैं
भोर के सपने कहां सच हो रहे हैं।