गज़ल
गज़ल
जब दिल में खालिश सी जाग जाती है।
तुम तो नहीं आती तुम्हारी याद आती है।
घूमती चंचल हवाएं नशीली वादियों में।
चांदनी बांहों में ले नदी को चूम जाती है
कूक कोयल की बांसुरी के स्वर में घुली
धड़कने मेरी तब प्रणय के गीत गाती हैं।
मन मंदिर में सजी है मूर्ति दिलदार की
आरजू के दिए वहां मेरी सांसे जलाती हैं।
सुबह आती है ढल के शाम में बदलती है।
जिंदगी बस यूं ही पल पल बीत जाती है ।

