गज़ल
गज़ल
हमारे इश्क में कभी रंगीन शाम आई थी।
वही दिलकश नदी पहाड़ आशनाई थी।
लरजते होठों से गीतों के जाम छलके थे।
चांदनी रात थी हम तुम और तन्हाई थी।
जुल्फ की घटाओं में चांद छुपा लगता था।
हार बाहों के लिए क्या हसीन रानाई थी ।
उस सूरत के दीवाने हुए बड़े नादान थे हम।
जिसकी हर अदा ओ सीरत में बेवफाई थी।
बेवफा सनम से कर हमने वफा की उम्मीद।
चैन खोया बेवजह और नींद भी गवाई थी।