जैसे अफसाने हमारे
जैसे अफसाने हमारे
हर मोड़ पर मुझको तुम इस तरह मिलते रहे।
जैसे अफसाने हमारे बसंती फूल से खिलते रहे।
खेत के नीचे बहती नदी के सामने की रेत में।
बांह बाहों में लिए हम डूबे इश्क में चलते रहे।
सिर मेरा गोदी में ले जुल्फों की छाया में छिपा
अपने नर्म होठों से मेरे माथे को तुम छूते रहे।
बालों में मेरे तुम्हारी नर्म सांसों का वो सफर।
हाथ मेरे बेखुदी में तेरे रुखसार को छूते रहे।
दो पल के सुख के बदले मैंने दर्द सारा ले लिया
उस आग के दरिया में फिर ताउम्र हम जलते रहे।