इश्क़ सिखाकर चले गए
इश्क़ सिखाकर चले गए
कुछ बादल आकर लहरों संग,
हमें इश्क़ सिखा कर चले गए,
बूंदों से बचकर रहते थे,
बेरहम भिगा कर चले गए।
वो टूट के बिखरा वरक़ कहीं,
वो मिटी लिखावट बूंदों से,
वो बेमतलब की भाषा में,
कुछ हमें लिखाकर चले गए।
नींदों में सपने सजते हैं,
होठों पर मधुर तराने हैं,
वो आकर मेरे सन्नाटे में,
एक शोर मचाकर चले गए।
इन धुंधली-धुंधली रातों में,
जुगनू के डेरे लगते थे,
वो आकर काली रातों में,
कुछ रौशन दिए जला गए।
उस पगडंडी पर बैठे हैं,
जहाँ तेरे साए मिलते हैं,
वो गुज़रे, ना दीदार हुआ, यूँ आए,
आकर चले गए।
कुछ बादल आकर लहरों संग,
हमें इश्क़ सिखाकर चले गए।