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Atam prakash Kumar

Classics

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Atam prakash Kumar

Classics

इस तरह अब तू मटकना छोड़ दे

इस तरह अब तू मटकना छोड़ दे

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इस तरह अब तू मटकना छोड़ दे।      

लौट आ घर यूँ भटकना छोड़ दे।      

कर गया तू पार अस्सी अब ज़रा,    

नारियों से यूंँ लिपटना छोड़ दे।      


सोच अब तू देश की संसार की,       

सिर्फ़ अपने तक सिमटना छोड़ दे।     

मिल गया तुझको तुम्हारे भाग्य का,     

भाग औरों का झपटना छोड़ दे।      


काम कर पूरा लिया जो हाथ में,       

फ़र्ज़ अपने से छटकना छोड़ दे।        

जब तुम्हारी हो ज़रूरत काम कर,         

वक्त पड़ने पर सटकना छोड़ दे।     


लोग हंँसते हैं तुम्हारी बात पर,         

बात से अब तू पलटना छोड़ दे।         

जज बना है साख़ भी इसकी बचा,        

फ़सलों को यूँ पलटना छोड़ दे।     

 

हर मुसीबत का किया कर सामना,     

रोज़ सूली पर लटकना छोड़ दे।    

आदमी की आदतों पर व्यंग

प्रस्तुत करती एक ग़ज़ल।


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