इंतजार
इंतजार
उसकी आँखों में अब भी
अपने लाल का इंतजार है,
उसके चेहरे पर आज भी,
अपने लाल के वियोग की मायूसी है,
उसके जेहन में अब तक,
अपने लाल के कदमों की आहट है,
यह वृद्धाश्रम की माँ का इंतजार है....
उसकी छत टपक रही है,
उसके अश्रु भी छलक रहे है,
रूखी सूखी खाती है,
फिर भी आशीष देती है,
दूध - भात - कटोरा अब भी संजोती है,
काजल का कजरौटा अब भी रखती है,
वृद्ध आश्रम की दहलीज पर बैठी राह
निहारती माँ,
कभी सोचती रहती....
कैसी माया नगरी में खोया मेरा लाल है,
कौन जाने कैसा उसका हाल ?
ऐसा क्या बेचारे के जी का जंजाल है,
ऐसा क्या बुन रहा दौलत का जाल है,
क्यों उसके महल की मुझ तक आती राह नहीं,
क्यों मेरी ममता का अब कोई गवाह नहीं ,
ये कलियुग के मोह चकरव्युह में फंसी माँ है...
क्या काल चल रहा कोई चाल है?
आखिर कोई तो बतलाए,
क्यों मुझसे बिछड़ा मेरा लाल है?