इन्तज़ार
इन्तज़ार
सब भूल गया हूँ मगर कुछ याद सा क्यूँ है
मेरी निगाह में तेरा फिर खाब सा क्यूँ है
जो था नहीं तसकीन ए मुकद्दर मेरा साया
फिर अपने मुकद्दर पे नया ये ताब सा क्यूँ है
तुम आओ के न आओ तुम्ही जानो, है हमे क्या
फिर हर सू हमें ये नया इन्तेजार सा क्यूँ है।