मजबूर
मजबूर
मैं हूँ मजबूर मुझको बेवफ़ा का नाम देते हो
बड़े ही प्यार से तुम क़त्ल को अन्जाम देते हो।
वो आया था इसी जानिब लिये दिल के सफ़ीने को
अब उसकी मौत को तुम ख़ुदकुशी का नाम देते हो।
बने कितने यहाँ मजनूँ औ कितने हो गए फ़रहाद
चलो सोचो के मुझको अब नया क्या नाम देते हो।
वो आया था खुदा की बन्दगी के वास्ते मन्दिर
मुस्लमाँ तुम वो है काफिर ये क्यूँ इल्जाम देते हो।

