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Anand Mishra

Romance

4  

Anand Mishra

Romance

कुछ तो याद तुम्हें भी होगा

कुछ तो याद तुम्हें भी होगा

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371

#कुछ_तो_याद_तुम्हे_भी_होगा

उस वासन्ती मधुर सुवासित,पुष्पित प्रेम-विटप की छाया,

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा,


छुपकर लाली गुलमोहर की जो आ बैठी उभय ह्रदय में ,

मेरे कपोलों की कुछ लाली गात तुम्हारे पर जा उतरी,

उस नीरव में प्रथम बार जो ऊष्ण हुये मन के भावों को

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।


जब तरूणाई की चौखट पर प्रथम बार हम खड़े हुए थे

कैसे मन के दरवाजे पर सहलाती सी दस्तक देकर,

और ऊँघते मुझे जगाकर तुमने एक जीवन बदला था

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।


कितने शरद गए और आए शैशव से उस तरुणाई तक

लेकिन प्रथम बार वह उष्मित शरद ह्रदय में उतर गया था

प्रथम बार हेमन्त नही तुम फिर वसन्त ही ले आए थे 

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।


मेरी आँखों में कितने ही स्वप्न जगाकर देने वाले,

मेरे होंठों की चिरसंचित त्रष्णा को हर जाने वाले,

कितने क्षण तुमने हंसकर उपहार समझ मुझको सौपे थे

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।। 


कितनी शपथ उठाईं हमने हाथ पकड़ कर एक-दूजे का 

कितनी ही सौगन्धे खाईं, मुझमे तुममे "हम" होने का

कैसे छत पर तारे गिन गिन फिर फिर वे कसमें दुहराईं

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।। 


सच कहता हूँ मैंने प्रतिदिन फिर फिर वे कसमें दुहराई़

जो तुमने सौंपी थी सारी स्म्रितियों की लता सजाई

इन्ही लताओ की सुगन्ध से दोनों के मन भरे हुए थे

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।।


कैसे तुमने हाथ छुड़ाया कहां गए तुम पता नहीं है

मैं बस तुम बनकर रह पाया मेरा तो बस साक्ष्य यही है 

कितना विस्म्रत कितना स्म्रत इसका गान कहां तक होगा

ऐसे कैसे भूल गए तुम कुछ तो याद तुम्हें भी होगा।


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