पैग़ाम
पैग़ाम
तुम्हारे पैग़ामे दोस्ती का एहतराम बहुत हैं,
पर क्या करें इस नाम पे इल्ज़ाम बहुत हैं,
डर लगता है कीमत से वफ़ाओं की तुम्हारी,
मेरे बरअक्स ए गिरह तेरा दाम बहुत है
कई रोज़ से बस्ती में कोई क्यों नहीं रोया,
सब मर गए के मौत का बस नाम बहुत है,
तेरी निगाह फिर गयी बस एक यही अज़ाब,
हम पे तो क़यामत का ये सामान बहुत है,
चुप्पी की यहां तारी है आदत सुनो "आन्नद"
आवाज़ उठाने में यहां झाम बहुत है,